Monday, December 31, 2018

"CYCLE" STORY Hindi Lyric-Yahya Bootwala Love Poetry

हेल्लो  दोस्तों  मै  हूँ  वेद प्रकाश  तिवारी  आप सभी का Yahya Bootwala Love Poetry Tech-Point में स्वागत करता हूँ, दोस्तों याह्या  बूटवाला की आज तक जितनी भी स्टोरीज़ या कवितायेँ आयी हैं  सोशल  मीडिआ पर  उन्हें बहोत  व्यूज मिलें हैं इसका मुख्य कारण यह है की याह्या बूटवाला की कविताएं बहोत ही रोमांटिक, इमोशनल और बहोत अच्छी होती हैं | 
दोस्तों यंहा  आज यंहा याह्या बूटवाला जी की एक प्यारी और मोटिवेटेड स्टोरी लेकर आया हूँ , जिसमे याह्या जी ने जीवन को  साइकिल से जोड़ते हुए बताया है की कैसे हम बचपन में साइकिल सीखते हैं और बार बार गिरते हैं|  पर अंततः हमें बाद में साइकिल चलाना आ जाता है क्योंकि हमने उसके लिए प्रयत्न किया था तथा साथ ही साथ कुछ गलतियां भी होती हैं | जिनको याह्या जी ने बताया है की अगर उन्हें सुधारा नहीं जाता है तो, उन गलतियों को बार-बार  करने   की आदत बन जाती है | 

दोस्तों आप भी इस स्टोरी का आनन्द लें, तथा हमें Subscribe करें | तथा दोस्तों आपको यह  स्टोरी कैसी लगी Comment के माध्यम से अवश्य बताएं| 
Dear friends Read, Like & share----


"CYCLE"

एक सुबह बाबा आये मुझे उठा कर बोले,
याह्या चलो,
आज मै तुम्हे साइकिल चलाना सिखाता हूँ | 

यार,,,,
अब तक आफताब ने भी अपनी  आँखे खोली नहीं थी,
और मै खुद रात को Cartoon देख कर देरी से सोया था | 
तो मैंने वही कहा जो हर बच्चा बोलता है,


ठीक है बाबा ||| 

मै  जैसे ही बाहर गया वंहा पर एक नयी 
चमचमाती हुयी साइकिल मेरा इंतज़ार कर रही थी | 

उसको देखकर मेरा नादान सा मन उछल-कूद करने लगा, 
पर जैसे ही मेरी नजर पिछले वाले पहिये के
Trainning wheels के गैर मजूदगी पर गयी,

मेरा मन फिर बैठ गया| 

जहन में एक डर सा उठ गया था 
पर जिसे बाबा ने भांप लिया था | 
इसीलिए उन्होंने कहा-
"बेटा, मै हूँ ना | 

तो उस छोटी सी साइकिल की छोटी से सीट पर 
मैंने अपनी छोटी सी तसरीफ जमाई,
पैडल  पर जोर डाला,
पहिये थोड़ा  घूमे,
और साइकिल डगमगाते हुए आगे बढ़ी | 

जिससे  मै खुश था,पर न जाने क्यों बाबा पीछे से कह रहे थे की,
Handel सीधा रक्खो, 
अरे ये साइकिल दाएं जा रही है,
Paddle करना मत छोडो| 
अरे, गिर जाओगे,

पहले दिन इतनी, इतनी कशरत कौन कराता है | 
पर बाबा ये कशरत मुझे रोज करा रहे थे,

फिर , एक दिन अचानक मेरी साइकिल ने डगमगाना छोड़ दिया | 

ख़ुशी के मारे मै बाबा को पीछे मुड के यह कहना चाहता था,
देखो बाबा मै साइकिल करना सीख गया,
पर बाबा बहोत दूर खड़े हुए थे,

मै इतना दूर खड़ा था की 
मै  डरा ,
और मेरी डर की वजह से साइकिल फिर डगमगायी 
और पहली बार गिरी | 



मेरी तशरीफ़ जो सीट पर जमी हुयी थी,
वो जमीन पर आ गिरी थी| 
बाबा दौड़े-दौड़े पीछे से आये 
थोड़ा मुस्कुराये,
मुझे उठा कर घर ले गए | 

पर न जाने क्यों उस दिन से गिरने का 
एक अजीब सिलसिला सुरु हो गया था | 
क्योंकि जंहा मेरी साइकिल ने डगमगाना छोड़ा मै 
और जब तक मेरी नजर 
फिर रस्ते  पड़ती ,
मै  खुद रस्ते पर पड़ा होता | 

तो, एक दिन मैंने सोचा की आज तो इस डर की 
ऐसी की तैसी करूँगा | 

तो, मैंने अपनी साइकिल को भगाना सुरु किया 
की इतना तेज़ 

बाबा पीछे से चिल्ला रहे थे की,
बेटा तुम बहोत तेज़ जा रहे हो,
थोड़ा धीमे चलाओ,थोड़ा धीमे चलाओ,

अरे, वो आगे देखो ,
खड्ढा है, अरे तुम किसी से टकरा जाओगे | 



उसकी साड़ी नसीहत मानो,
मेरी रफ़्तार में कंही गुम सी हो गयी थी,
ये जो हवा चल भी नहीं रही थी,

वो अचानक मुझे चूमना सुरु कर चुकी थी और,
उस रफ़्तार से बस मुझे मोहब्बत हो ही  थी | 
की अचानक मेरा पैर फिसला,
Paddle से,
साइकिल फिसली,
मै  घसीटते हुए जमीन पे गिरा | 


और पहली बार,
आँखों से आँशु और घुटने से लहू बहा ,,,

पर असली जखम मेरे हम को लगा था | 
बाबा दौड़े-दौड़े आये 
और बिना मुस्कुराये मुझे उठा कर घर ले गए और 
बस इतना कहा--
कि,
कल साइकिल मत चलाना|  

पर, अब साइकिल मुझे चलानी थी,
क्योंकि कल  गिर रहा था 
अपने डर की वजह से,
आज जो मै गिरा था वो अपनी बेवकूफी की वजह से ,

और एक चीज जो  मै जानता था की,
डर से तो भी लड़ा जा सकता है,
पर बेवकूफी, बेवकूफी को न सुधारो तो उसको 
दोहराने की  आदत बन जाती है | 



तो, 
अगली सुबह मै उठा,
सूरज से पहले 

साइकिल को Stand से हटाया 
और मीलों मील तक चला ले गया 
एक मोड़ से घुमा कर फिर  घर लाया 




बिना गिरे ||| 

फिर सुबह बाबा को मैंने उठाया,
हँसते-हँसते पूरा किस्सा सुनाया 
और बस इतना कहा 
बाबा देखो साइकिल चलना मै आखिर में सीख गया 

बाबा मुस्कुराये,  
और जवाब में कहा की,
बेटा तू साइकिल चलाना ही  नहीं,
आज तू ज़िंदगी में चलना भी सीख गया | 



उन्होंने मुझे बताया की,
कैसे Handel हमारा ध्यान है,
Paddle  हमारी मेनहत,

ये चलती  साइकिल हमारी कामयाबी,
ये जो चल  रही है इस रस्ते पे 
जिसे कहते हैं ज़िंदगी|| 

उन्होंने मुझे समझाया की घमंड की रफ़्तार में 
और इंसानी रिश्तों के खड्ढों में मै 
बार-बार गिरूंगा| 

पर, मुझे उठना है 
साइकिल को फिर से खड़ा करना है
और चलाते जाना है,


तब तक.




 जब  तक मौत की खायी न आ जाये| 

Click here for best love poetry Hindi Lyric- Yahya Bootwala






दोस्तों, अगर याह्या बूटवाला की ये कहानी आपको अच्छी लगी हो तो Like जरूर कीजियेगा तथा Comment के माध्यम से बताएं की आपको स्टोरी कैसी लगी | तथा हमें Subscribe करें मित्रों---


2 comments:

क्या कूदना जरूरी था?(Kya koodna jaroori tha) Hindi Lyric- Yahya Bootwala Love Poetry

Friends, Yahya Bootwala Ji has given many poems to this day and he has given very good stories which are related to our life, he has perfo...